महाश्वेता देवी एक बांग्ला साहित्यकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जिनका जन्म अविभाजित भारत के ढाका में हुआ। उन्हें 1996 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। मेहनत व ईमानदारी के बूते उन्होंने अपने व्यक्तित्व को निखारा और एक पत्रकार, लेखक, साहित्यकार और आंदोलनधर्मी के रूप में पहचाई बनाई।
इनका पहला उपन्यास, “नाती”, 1957 में अपनी कृतियों में प्रकाशित किया गयाा। 1956 में प्रकािशत हुआ ‘झाँसी की रानी’ उनकी पहली रचना है। स्वयं उन्हीं के शब्दों में, “इसे लिखने के बाद मैं समझ पाई कि मैं एक कथाकार बनूँगी।” इस पुस्तक को महाश्वेता ने कोलकाता में बैठकर नहीं बल्कि सागर, जबलपुर, पूना, इंदौर, ललितपुर के जंगलों, झाँसी ग्वालियर, कालपी में घटित तमाम घटनाओं यानी 1857-58 में इतिहास के मंच पर जो हुआ उस सबके साथ चलते हुए लिखा। वहाँ उनका ध्यान लोढ़ा तथा शबरा आदिवासियों की दीन दशा की ओर अधिक रहा। बिहार के पलामू क्षेत्र के आदिवासी भी उनके सरोकार का विषय बने। इनमें स्त्रियों की दशा और भी दयनीय थी, जिसे महाश्वेता देवी ने सुधारने का संकल्प लिया और व्यवस्था से सीधा हस्तक्षेप शुरू किया।
देश की पहली कार जिसके डिजाइन से लेकर निर्माण तक का कार्य भारत की कंपनी ने किया हो, उस टाटा इंडिका प्रोजेक्ट का श्रेय भी रतन टाटा के खाते में ही जाता है। इंडिका के कारण टाटा समूह विश्व मोटर कार बाज़ार के मानचित्र पर उभरा है। 1991 में वह टाटा संस के अध्यक्ष बने और उनके नेतृत्व में टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टाटा पावर, टाटा टी, टाटा केमिकल्स और इंडियन होटल्स ने भी काफ़ी प्रगति की। टाटा ग्रुप की टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) आज भारत की सबसे बडी सूचना तकनीकी कंपनी है। वह फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन के बोर्ड आंफ़ ट्रस्टीज के भी सदस्य हैं।
कंपनी के नियमानुसार 65 वर्ष की उम्र पार कर लेने के बाद वह पद से तो रिटायर हो गए, पर काम करने का जुनून अब भी उन पर हावी है। उन्होंने अपने 21 साल के मुखिया कार्यकाल में टाटा उद्योग समूह को बहुत आगे बढ़ाया जो अपने आप में एक मिसाल है। उनके अनुसार, मिसाल कायम करने के लिए अपना रास्ता स्वयं बनाना होता है। रतन टाटा ने अपने उत्तराधिकारी साइरस पलोनजी मिस्त्री को भी यह सलाह दी कि वह रतन टाटा बनने की अपेक्षा अपने मौलिक गुणों एवं प्रतिभाओं के अनुसार काम करें, तो वह रतन टाटा से भी आगे जा सकते हैं। यानि साइरस मिस्त्री, साइरस मिस्त्री बनकर ही रतन टाटा की कामयाबियों से भी आगे जा सकते हैं। यदि साइरस मिस्त्री रतन टाटा बनने की कोशिश करेंगे तो वह न रतन टाटा बन पाएंगे और न ही साइरस मिस्त्री रहेंगे। हालांकि ये अलग बात है कि मिस्त्री को किन्हीं कारणों से 2016 में टाटा उद्योग समूह की अध्यक्षता छोड़नी पड़ी। रतन टाटा ने अपने करिअर के शुरुआती दिनों में नेल्को और सेंट्रल इंडिया टेक्सटाइल जैसी घाटे की कंपनियों को संभाला और उन्हें मुनाफे वाली इकाई में बदल कर अपनी विलक्षण प्रतिभा को सबके सामने पेश की। फिर साल दर साल उन्होंने अनेक क्षेत्रों में टाटा का विस्तार किया और सफलता पाई।
अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कर विजेता अमर्त्य सेन का जन्म कोलकाता में शांति निकेतन में हुआ था। उनके पिता आशुतोष सेन ढाका विश्वविद्यालय में रसायन शास्त्र पढ़ाते थे। कोलकाता स्थित शांति निकेतन और प्रेसीडेंसी कॉलेज से पढ़ाई पूरा करने के बाद उन्होंने कैम्ब्रिज के ट्रिनीटी कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की डिग्री ली।
वह भारत, ब्रिटेन और अमेरिका में प्रोफ़ेसर रह चुके हैं। उन्हें ग़रीबी और भूख जैसे विषयों पर काम करने के लिए 1998 में अर्थशास्त्र का नोबल पुरस्कार दिया गया। वह ये प्रतिष्ठित पुरस्कार जीतने वाले पहले एशियाई नागरिक थे। उन्होंने ग़रीबी और भुखमरी जैसे विषयों पर काफ़ी गंभीरता से लिखा है। उन्हें पुरस्कार देने वाली समिति ने उनके बारे में टिप्पणी की थी, “प्रोफ़ेसर सेन ने कल्याणकारी अर्थशास्त्र की बुनियादी समस्याओं के शोध में एक बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिया है।”
नागवार रामाराव नारायणमूर्ति भारत की प्रसिद्ध सॉफ़्टवेयर कंपनी इन्फोसिस टेक्नोलॉजीज के संस्थापक और जानेमाने उद्योगपति हैं। उनका जन्म मैसूर में हुआ। आई आई टी में पढ़ने के लिए वे मैसूर से बैंगलौर आए, जहाँ 1967 में उन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय से बैचलर ऑफ़ इन्जीनियरिंग की उपाधि और 1969 में आई आई टी कानपुर से मास्टर आफ टेक्नोलाजी (M.Tech) की डिग्री प्राप्त की। एन. आर. नारायणमूर्ति के अनुसार…
आप कोई भी बात कैसे सीखते हैं? अपने खुद के अनुभव से या फिर किसी और से? आप कहां से और किससे सीखते हैं, यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि आपने क्या सीखा और कैसे सीखा। अगर आप अपनी नाकामयाबी से सीखते हैं, तो यह आसान है। मगर सफलता से शिक्षा लेना आसान नहीं होता, क्योंकि हमारी हर कामयाबी हमारे कई पुराने फैसलों की पुष्टि करती है। अगर आप में कुछ नया सीखने की कला है, और आप जल्दी से नए विचार अपना लेते हैं, तभी आप सफल हो सकते हैं।
इंदिरा कृष्णमूर्ति नूई का नाम दुनिया की प्रभावशाली महिलाओं में शुमार है। वे येल कारपोरेशन की उत्तराधिकारी सदस्य हैं। साथ ही वे न्यूयॉर्क फेडरल रिजर्व के निदेशक बोर्ड की स्तर बी की निदेशक भी हैं। इसके अलावा वे अंतरराष्ट्रीय बचाव समिति, कैट्लिस्ट के बोर्ड और लिंकन प्रदर्शन कला केंद्र की भी सदस्य हैं। वे एइसेन्होवेर फैलोशिप के न्यासी बोर्ड की सदस्य हैं और वर्तमान में यू एस-भारत व्यापार परिषद में सभाध्यक्ष के रूप में अपनी सेवाएँ दे रही हैं।
वर्ष 1986-90 के बीच उन्होंने मोटोरोला कंपनी में कॉरपोरेट स्ट्रैटजी के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया और कंपनी के ऑटोमोटिव और इंडस्ट्रियल इलेक्ट्रॉनिक्स के विकास का मार्गदर्शन किया। नूई पेप्सिको की दीर्घकालिक ग्रोथ स्ट्रैटजी की शिल्पकार मानी जाती हैं। नूई 1994 में पेप्सिको में शामिल हुई और 2001 में अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी बनीं।
साइना नेहवाल, परूपल्ली कश्यप, पीवी सिंधु और गुरूसाई दत्त को बैडमिंटन जगत में बड़ा नाम बनाने वाले पुलेला गोपीचंद बैडमिंटन के बेहतरीन कोच हैं। वर्ष 2001 में ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैम्पियनशिप जीतने वाले दूसरे भारतीय बने गोपीचंद ने खेल से संन्यास लेने के बाद गोपीचंद बैडमिंटन एकेडमी शुरू की जिसकी बदौलत देश को आज यह नामचीन सितारे मिले हैं।
पुलेला गोपीचंद ने 1991 से देश के लिए खेलना आरम्भ किया जब उनका चुनाव मलेशिया के विरुद्ध खेलने के लिए किया गया। उसके पश्चात उन्होंने तीन बार (1998-2000) ′थामस कप′ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है और अनेक बार विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा लिया है। उन्होंने अनेक टूर्नामेंट में विजय हासिल कर भारत को गौरवान्वित किया है। उन्होंने 1996 में विजयवाड़ा के सार्क टूर्नामेंट में तथा 1997 में कोलम्बो में स्वर्ण पदक प्राप्त किए।
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