Showing posts with label विक्रम बेताल की कहानी. Show all posts
Showing posts with label विक्रम बेताल की कहानी. Show all posts

Monday, December 23, 2019

VIKRAM BETAL KI KAHANI | विक्रम बेताल की कहानी



विक्रम बेताल की रहस्यमयी कहानी:- प्राचीन काल में विक्रमादित्य नाम के एक आदर्श राजा हुआ करते थे। अपने साहस, पराक्रम और शौर्य के लिए  राजा विक्रम मशहूर थे। ऐसा भी कहा जाता है कि राजा विक्रम अपनी प्राजा के जीवन के दुख दर्द जानने के लिए रात्री के पहर में भेष बदल कर नगर में घूमते थे। और दुखियों का दुख भी दूर करते थे। राजा विक्रम और बेताल के किस्सों पर कई सारी किताबें और कहानियाँ प्रकाशित हुई हैं। विक्रमादित्य और बेताल के किस्सों पर छपी “बेताल पच्चीसी ” और “सिंहासन बत्तीसी ” प्रख्यात किताबें हैं। जिन्हें आज भी अभूतपूर्व लोकप्रियता प्राप्त है।

प्राचीन साहित्य वार्ता लेख “बेताल पच्चीसी” महाकवि सोमदेव भट्ट द्वारा 3000 वर्ष पूर्व रचित किया गया था। और उसी के अनुसार, राजा विक्रम ने बेताल को पच्चीस बार पेड़ से उतार कर ले जाने की कोशिश की थी और बेताल ने हर बार रास्ते में एक नई कहानी राजा विक्रम को सुनाई थी।





एक तांत्रिक बत्तीस लक्षण वाले स्वस्थ ब्राह्मण पुत्र की बली देने का तांत्रिक अनुष्ठान करता है। ताकि उसकी आसुरी शक्तियाँ और बढ़ जाए। इसी हेतु वह एक ब्राह्मण पुत्र को मारने के लिए उसके पीछे पड़ता है। परंतु वह ब्राह्मण पुत्र भाग कर जंगल में चला जाता है और वहाँ उसे एक प्रेत मिलता है, जो ब्राह्मण पुत्र को उस तांत्रिक से बचने के लिए शक्तियाँ देता है और वहीं प्रेत रूप में पेड़ पर उल्टा लटक जाने को कहता है। और यह भी कहता है कि जब तक वह उस पेड़ पर रहेगा तब तक वह तांत्रिक उसे मार नहीं पाएगा। वही ब्राह्मण पुत्र “बेताल” होता है।

कपटी तांत्रिक एक भिक्षुक योगी का स्वांग रचता है। और राजा विक्रम के पराक्रम और शौर्य गाथाओं को सुन कर अपना काम निकलवा लेने का जाल बिछाता है। और राजा विक्रम को यात्रा के दौरान प्रति दिन एक स्वादिष्ट फल भेंट भेजता है। जिसके अंदर एक कीमती रत्न रूबी होता है। इस भेद का पता लगाने राजा विक्रम उस भिक्षुक  की खोज करते हैं। अंततः राजा विक्रम उसे खोज लेते हैं।

चूँकि उस ढोंगी भिक्षुक में स्वयं बेताल को लाने की शक्ति नहीं होती इसलिए वह स्वांग रच कर राजा विक्रम से उस पेड़ पर लटक रहे प्रेत बेताल को लाने के लिए कहता है। राजा विक्रम उस तांत्रिक की असल मंशा से अनजान उसका काम करने निकल पड़ते है।

राजा विक्रम पेड़ से बेताल को हर बार उतार लेते और उस भिक्षुक के पास लेजाने लगते। रास्ता लंबा होने की वजह से हर बार बेताल कहानी सुनाने लगता और यह शर्त रखता है कि कहानी सुनने के बाद यदि राजा विक्रम ने उसके प्रश्न का सार्थक उत्तर ना दिया तो वह राजा विक्रम को मार देगा। और अगर राजा विक्रम ने जवाब देने के लिए मुंह खोला तो वह रूठ कर फिर से अपने पेड़ पर जा कर उल्टा लटक जाएगा।



विक्रम बेताल की रहस्यमयी कहानी:- दगड़ू के स्वप्न घनघोर अंधेरी रात में राजा विक्रम अपनी खुली तलवार लिए बेताल को पकड़ने आगे बढ़ते हैं। और अपने पराक्रम से बेताल को वश में कर के अपने पीठ पर लाद कर ले जाने लगते है। सफर लंबा होने के कारण बेताल राजा विक्रम को कहानी सुनाता है और हमेशा की तरह शर्त रखता है कि–

अगर कहानी सुननें के बाद तुमने उत्तर देने के लिए मुह खोला तो में उड़ जाऊंगा।

बेताल कहानी  सुनाना शुरू करता है-

चंदनपुर गाँव में एक वृद्ध स्त्री रहती थी। उसका एक बेटा था जिसका नाम दगड़ू था। वह स्त्री नए-पुराने कपड़े सिलने का काम कर के अपना और अपने बेटे का पेट पालती थी। दगड़ू एक कामचोर और आलसी लड़का था। और दिन रात सपने देखा करता था। दगड़ू के साथ एक बड़ी परेशानी थी कि उसे अक्सर बुरे सपने ही आते थे। और जब भी कोई बुरा सपना आता था, वह सपना हकीकत बन जाता था।

एक दिन दगड़ू को सपना आता है कि  कुछ लोग नव विवाहित दम्पत्ति और बारात को लूट रहे हैं। और उनसे मारपीट भी कर रहे हैं। दगड़ू ने जिसे सपने में देखा होता है। वही दुल्हन बनने वाली लड़की अपनी शादी का लहंगा सिल जाने के बाद वापिस लेने दगड़ू की माँ के पास आती है। दगड़ू फौरन उसे सपने वाली बात कह देता है। वह लड़की अपनी माँ और ससुराल वालो को यह बात बताती है। पर सब लोग इस स्वप्न वाली बात को वहम समझ कर अनसुना कर देते हैं।

शादी के बाद जब वर-वधू बारात के साथ जा रहे होते हैं। तब सपने वाला वाकया सच में घटित हो जाता है। और इस पूरी घटना में दगड़ू पर आरोप लगते हैं कि वही लूटेरों से मिला होगा वरना उसे कैसे पता चल सकता है कि ऐसा ही होगा। और शक की बिनाह पर सारे लोग मिल कर दगड़ू की खूब पिटाई करते हैं।

इस घटना के कुछ दिनों बाद एक रात दगड़ू को सपना आता है कि मोहल्ले मे रह रही चौधरायन का नया मकान गृहप्रवेश के दिन जल कर ख़ाक हो जाता है। तभी अगले ही दिन चौधरायन उस मकान को बनवाने की खुशी में लड्डू ले कर दगड़ू की माँ के पास पहुँचती हैं। और गृहप्रवेश समारोह के दिन जलसे में आने का न्योता देती है।

वहीं पर सपने की बात दगड़ू फौरन अपनी माँ से और चौधरायन से कह देता है। चौधरायन गुस्से से लाल-पीली हो जाती है। और उल्टा दगड़ू की माँ को ही कहने लगती हैं कि तुम्हारा बेटा ही काली जुबान वाला है और उसके बोलने से ही सब के साथ अनर्थ हो जाता है। चौधरायन गुस्से में जली कटी सुना कर माँ बेटे को भला-बुरा कह कर वहाँ से चली जाती हैं।

गृहप्रवेश समारोह के दौरान कोई घटना ना हो इसके लिए पक्के इंतजाम किये जाते हैं; पर फिर भी किसी ना किसी तरह आग की चिंगारी चौधरायन के भव्य मकान के परदों में लग जाती है और देखते-देखते रौद्र रूप धाराण कर के पूरा मकान जला कर खाक कर देती है। चूँकि दगडू इस बारे में पहले ही बोल चुका था इसलिए सब उसे काली जुबान का बोल उसपर टूट पड़ते हैं और उसे  मारकर गाँव से निकाल देते हैं।



दगड़ू समझ नहीं पाता है कि लोगो को सच सुन कर उसी पर क्रोध क्यों आता है। खैर, दगडू एक दुसरे राज्य चला जाता है जहाँ उसे रात की पहर में महल की चौकीदारी करने का काम मिल जाता है।

वहां के राजा को अगले दिन सोनपुर किसी काम से जाना होता है। इस लिए वह रानी को कहते है कि उसे सुबह जल्दी उठा दें।

दगड़ू रात में महल के दरवाजे पर चौकीदारी कर रहा होता है। तभी अंधेरा होने पर उसे नींद आ जाती है। और फिर उसे सपना आता है की सोनपुर में भूकंप आया है और वहां मौजूद सभी व्यक्ति मर गए हैं। दगड़ू चौंक कर जाग जाता है और अपनी चौकीदारी करने लगता है।

दगड़ू सुबह राजा के सोनपुर जाने की बात सुनता है। तभी उनका का रथ रुकवा कर अपने स्वप्न वाली बात राजा को बता देता है। राजा सोनपुर जाने का कार्यक्रम रद्द कर देते है। और अगले ही दिन समाचार आता है  कि सोनपुर में अचानक भूकंप आया है और वहाँ एक भी व्यक्ति जीवित नहीं बचा है।

राजा तुरंत दगड़ू को दरबार में बुला कर सोने का हार भेंट देते हैं  और उसे नौकरी से निकाल बाहर करते हैं।


इतनी कहानी सुना कर बेताल रुक जाता है। और राजा विक्रम को प्रश्न करता है कि बताओ राजा ने दगड़ू को पुरस्कार क्यों दिया? और पुरस्कार दिया तो उसे काम से क्यों निकाला?

राजा विक्रम उत्तर देते है की… दगड़ू ने अमंगल सवप्न देख कर उसका वृतांत बता कर राजा की जान बचाई इस लिए उसेने दगड़ू को पुरस्कार में सुवर्ण हार दिया। और दगड़ू काम के वक्त सो गया इस लिए राजा ने उसे काम से निकाल दिया।

बेताल अपनी शर्त के मुताबिक राजा विक्रम के उत्तर देने के कारण हाथ छुड़ा कर वापिस पेड़ की और उड़ गया!

Vikram Betal Stories in Hindi:  राजा चन्द्रसेन और नव युवक सत्वशील की कहानी 
समुद्र किनारे बसे नगर ताम्रलिपि के राजा चन्द्रसेन के पास सत्वशील नाम का युवक नौकरी मांगने आता है। पर चन्द्रसेन के सिपाही सत्वशील को उनके पास जाने नहीं देते है। सत्व्शील हमेशा इसी ताक में रहता है कि किसी तरह रजा से मिला जाए।

एक दिन राजा की सवारी जा रही होती है। गर्मी अधिक होने के कारण राजा चन्द्रसेन को बहुत तेज  प्यास लग जाती है। बहुत खोजने पर भी उन्हें पानी नहीं मिलता, ऐसा लगता है मानो प्यास से जान ही निकल जायेगी!



तभी उन्हें मार्ग में खड़ा एक युवक दिखता है; वह कोई और नह सत्व्शील ही रहता है, जो जानबूझ कर पहले से राजा के मार्ग पर मौजूद रहता है। उसे देख राजा उससे पानी मांगते हैं। सत्वशील फ़ौरन राजा की प्यास बुझा देता है और साथ ही खाने के लिए उन्हें फल देता है। चन्द्रसेन सत्वशील से प्रसन्न हो पूछते हैं कि वह उनके लिए क्या कर सकते हैं?

सत्वशील मौका देख अपने लिए नौकरी मांग लेता है। राजा चन्द्रसेन उसे काम दे देते हैं, और कहते हैं कि वो उसका उपकार याद रखेंगे। धीरे-धीरे सत्व्शील राजा का करीबी बन जाता है। एक दिन राजा उससे कहते है कि हमारे नगर में काफी बेरोजगारी है और पास में एक टापू काफी हारा भरा है। अगर उस टापू पर जा कर खोज की जाए तो हो सकता है हमारे नगर के लोगो के लिए वहां कोई अवसर निकल आये।

सत्वशील तुरंत खोजबीन करने का बीड़ा उठा लेता है। और राजा चन्द्रसेन से एक नाव और कुछ सहयोगी प्राप्त कर के समंदर में टापू की और निकल पड़ता है। टापू के पास पहुँचते ही सत्वशील को एक झंडा पानी में तैरता नज़र आता है। उसे देख सत्वशील तुरंत हिम्मत कर के पड़ताल करने के लिए पानी में कूद पड़ता है।

सत्वशील अचानक खुद को टापू की जमीन पर पाता है। जहां एक सुंदर युवती संगीत सुन रही होती वह उस टापू की राजकुमारी होती है, और उसके आस पास अन्य युवतियां भी होती है। सत्वशील उसे अपना परिचय देता है और राजकुमारी सत्वशील को भोजन करने का प्रस्ताव देती है और खाने से पहले एक पानी के छोटे तालाब में स्नान करने को कहती है।

सत्वशील जैसे ही पानी में नहाने जाता है वह खुद कों ताम्रलिपि के महल में राजा चन्द्र सेन के पास पाता है। और इस चमत्कार को देख चन्द्रसेन भी चकित रह जाते हैं। चन्द्रसेन खुद इस रहस्यमय जगह पर जाने का फैसला कर लेते है और वहाँ जा कर उस टापू को जीत भी लेते हैं। उस टापू की राजकुमारी विजेता चन्द्रसेन को उस टापू का राजा घोषित करती हैं।

जीत की ख़ुशी में राजा चन्द्रसेन उस राजकुमारी से सत्वशील का विवाह कराने का आदेश दे देते हैं और उस क्षेत्र की रक्षा और प्रतिनिधित्व का भार सत्वशील को सौप देते हैं। इस तरह चन्द्रसेन सत्वशील के उपकार का बदला चुकाते हैं।

                                         
इतनी कहानी बता कर बेताल चुप हो जाता है और राजा विक्रम से प्रश्न करता है कि दोनों में से अधिक बहादुर कौन था? सत्वशील या टापू जीतने वाला राजा चन्द्रसेन। राजा

विक्रम तुरंत उत्तर देते हैं की सत्वशील अधिक बहादुर था क्योंँकि  जब टापू के पास उसने पानी में झंडा देख कर छलांग लगाई, तब वह वहाँ कि स्थिति से अंजान था। वहाँ मौत का खतरा भी हो सकता था। पर राजा चन्द्रसेन तो पूरी बात जानता था, और वह सेना की मदद से जीत हासिल कर पाया। इसलिए सत्वशील अधिक बहादुर था।

एक बार फिर राजा विक्रम के मुंह खोलते ही बेताल उड़ गया............और पेड़ पर जा कर उल्टा लटक गया।

UPSC MOTIVATION PART 5

UPSC MOTIVATION LINE   Everything we could ever hope for can materialize, assuming we dare to seek after them." — Walt Disney     "...