Tuesday, December 24, 2019

महान वैज्ञानिक हरगोविन्द खुराना की जीवनी | Har Gobind Khorana Biography,


वैज्ञानिक डॉ. हरगोविंद खुराना


महान वैज्ञानिक डॉ. हरगोविंद खुराना एक बायोकेमिस्ट (जैव रसायन शास्त्री) थे, जिन्हें 1968 में फिजियोलॉजी या मेडिसिन के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। डॉ. खुराना ने ही पहली बार protein synthesis में nucleotides के रोल को दर्शाया था ।

अब आइये आज हम उनके प्रेरणादायी जीवन के बारे में विस्तार से जानें।

डॉ. हरगोविन्द खुराना संक्षिप्त परिचय
नाम डॉ हरगोविन्द खुराना
जन्म 9 जनवरी, 1922, रायपुर जिला – मुल्तान, पंजाब (वर्तमान – पाकिस्तान)
मृत्यु 9 नवंबर, 2011 (कॉनकॉर्ड, मैसाचुसिट्स, अमरीका)
परिवार पत्नी – एस्थर एलिजाबेथ सिल्बर (विवाह 1952)
संतान 3 – पुत्र – डेव रॉय, पुत्री – एमिली एन्न, पुत्री – जूलिया एलिजाबेथ,

कार्यक्षेत्र वैज्ञानिक, (मोलेक्यूलर बायोलॉजिस्ट)
राष्ट्रीयता भारतीय, अमरीकी (वर्ष – 1966)
शिक्षा M॰ Sc॰ एवं पी॰ एच॰ डी॰
उपलब्धि प्रोटीन संश्लेषण में न्यूक्लिटाइड की भूमिका का तर्क देने का श्रेय नोबेल पुरस्कार
प्रारम्भिक जीवन
कुशल वैज्ञानिक श्री हरगोविन्द खुराना का जन्म ब्रिटिश कालीन भारत में 9 जनवरी, 1922 को पंजाब के छोटे से गाँव रायपुर में हुआ था। अब यह जगह पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा है। उनके पिता का नाम श्री गणपत राय खुराना था जो पटवारी का काम करते थे। उनकी माताजी श्रीमती कृष्णा देवी खुराना एक गृहणी थीं। परीवार में एक बहन और चार भाइयों में हरगोविन्द सबसे छोटे थे।

हरगोबिन्द के पिता शिक्षा का महत्त्व अच्छी तरह समझते थे इसलिए अभावग्रस्त जीवन जीने के बावजूद वे हेमशा अपने बच्चों की पढाई को लेकर गंभीर रहते थे और स्कूल से आने के बाद खुद भी उन्हें घर पर पढ़ाते थे। सचमुच यह माता-पिता द्वारा दिए गए अच्छे संस्कार और शैक्षणिक माहौल का ही परिणाम था कि कभी गाँव के पेड़ के नीचे पढने वाला लड़का आगे चल कर विश्व का जाना-माना वैज्ञानिक बन गया।

नोबेल पुरस्कार जीतने के बाद डॉ. खुराना ने अपनी आत्मकथा में लिखा था-

गरीब होते हुए भी मेरे पिता अपने बच्चों की शिक्षा के लिए समर्पित थे और 100 लोगों के गाँव में एकमात्र हमारा ही परिवार था जो शिक्षित था।

शिक्षा और उच्च अभ्यास
बाल्यकाल से ही हरगोविन्द तेजस्वी छात्र थे और कक्षा में अधिक्तर अव्वल रहते थे। इसी कारणवश उन्हें निरंतर छात्रवृत्ति मिलती रही और वे आगे की पढाई सुचारू रूप से कर पाए.



गाँव से निकलने के बाद हरगोविन्द खुराना ने डी. ए. वी हाई स्कूल, मुल्तान से शिक्षा प्राप्त की। इस दौरान वे अपने गुरु श्री रतन लाल जी से काफी प्रभावित रहे। इसके बाद वे पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर चले गए। यहाँ से उन्होंने वर्ष 1943 में बी॰ एस॰ सी॰ आनर्स की पढ़ाई पूर्ण की। और वर्ष 1945 में एम॰ एस॰ सी ऑनर्स की डिग्री हासिल की थी। इस दौरान उन्हें उनके शिक्षक महान सिंह द्वारा उचित मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।

हर गोबिंद खोराना 1945 तक भारत में ही रहे। इसके बाद वह भारत सरकार से छात्रवृति अर्जित कर के उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए ब्रिटेन गए।

वहां उन्होंने लीवरपूल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रॉजर  जे॰ एस॰ बियर की देखरेख में महत्वपूर्ण अनुसंधान सम्पन्न किए, और डॉकटरेट (PHD) की उपाधि हासिल की।

इसके बाद 1948 में वह एक साल के लिए स्विट्जरलैंड के (Eidgenössische Technische Hochschule, Zurich) फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलोजी में अन्वेषण कार्य हेतु गए। वहाँ किए गए अन्वेशण कार्य में प्रोफ़ेसर व्लादिमीर प्रेलॉग उनके सहभागी थे। प्रोफ़ेसर प्रेलॉग के सानिध्य का डॉ. खुराना पर गहरा असर पड़ा और यह उनके कार्यक्षेत्र और प्रयासों में काफी मददगार साबित हुआ।

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हरगोविन्द खुराना का उज्ज्वल करियर
1. डॉक्टरेट डिग्री पा लेने के बाद हरगोविन्द एक बारा फिर ब्रिटेन गए। जहां उन्होने वर्ष 1950 से 1952 तक कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में लॉर्ड टाक और जी. डब्लू . केनर के साथ अधय्यन किया। और अपना ज्ञानवर्धन करते रहे।

2. वर्ष 1952 में ही उन्हे कनाडा के वैंकोवार में स्थित कोलम्बिया विश्वविद्यालय से बुलावा आया। वहाँ जा कर उन्होने जैव रसायन विभाग का अध्यक्ष पद संभाला था। यहीं पर रह कर उन्होने आनुवाँशिकी क्षेत्र में गहन शोध कार्य आगे बढ़ाया।

3. कनाडा के वैंकोवार, कोलम्बिया विश्वविद्यालय में उनके द्वारा की गयी आनुवाँशिकी शोध के चर्चे आंतरराष्ट्रिय पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगे। और अपने इस महान कार्य की बदौलत उन्हे कई पुरस्कार एवं सम्मान भी प्राप्त हुए।

4. डॉ हरगोविन्द सिंह को वर्ष 1960 में कैनेडियन पब्लिक सर्विस द्वारा गोल्ड मैडल दिया गया था। इसी वर्ष वह कनाडा से अमरीका गए। वहाँ उन्होने  विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ एन्ज़ाइम रिसर्च में एक प्रोफ़ेसर की नौकरी की थी। और आगे चल कर करीब पाँच से छे वर्ष बाद (वर्ष 1966 में) वह अमरीकी नागरिक बन गए।

5. 1968 में डॉ. हरगोबिन्द खुराना डॉ॰ मार्शल निरेनबर्ग और राबर्ट होले को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। डॉ हरगोविन्द खुराना नोबेल पुरस्कार अर्जित करने वाले भारतीय मूल के तीसरे भारतीय बने थे जिनहोने यह प्रतिष्ठित सम्मान अर्जित किया था।



6. इन तीनों वैज्ञानोंको ने मिल कर डी॰ एन॰ ए॰ अणु संरचना का स्पष्टीकरण किया था। एवं इनहोने ही डी॰ एन॰ ए॰ द्वारा की जाने वाली प्रोटीन संश्लेषण की जटिल प्रक्रिया भी समझाई।

7. नोबेल पुरस्कार जीतने के बाद डॉ हरगोविन्द खुराना नें अपने अनुसंधान, अध्ययन और अध्यापन कार्य जारी रखे थे। उनके सानिध्य में विश्व के कई विज्ञान छात्रों नें डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की थी।

8. वर्ष 1970 में डॉ हरगोविन्द खुराना एम॰ आई॰ टी॰ इंस्टीट्यूट में जीव विज्ञान एवं रसायन विज्ञान के अल्फ्रेड स्लोअन प्रोफ़ेसर पद पर नियुक्त किए गए थे। आने वाले लंबे समय (वर्ष 2007) तक वह इसी संस्था से जुड़े रहे और वहाँ रह कर उन्होने कई सारे अध्ययन सफलता पूर्वक सम्पन्न किए और प्रसिद्धि प्राप्त की थी।

9. डॉ हरगोविन्द खुराना को सम्मानित करने के लिए वोस्कोंसिन मेडिसिन यूनिवर्सिटी, इंडो-यू॰एस॰ साईस एंड टेकनोंलॉजी तथा भारतीय सरकार नें साझा स्वरूप से वर्ष 2007 में खुराना प्रोग्राम का अनावरण किया था।

हरगोविन्द खुराना को प्राप्त हुए मुख्य  8 सम्मान
1. वर्ष 1958 में मर्क मैडल (कनाडा) मिला।
2. वर्ष 1960 में कैनेडियन पब्लिक सर्विस द्वारा गोल्ड मैडल दिया गया।
3. वर्ष 1967 में डैनी हैंनमेन अवार्ड मिला।
4. वर्ष 1968 में चिकित्सा विज्ञान में नोबेल अवार्ड जीता।
5. वर्ष 1968 में लॉसकर फेडरेशन पुरस्कार जीता।
6. वर्ष 1968 में लूसिया ग्रास हारी विट्ज पुरस्कार जीता।
7. वर्ष 1969 में भारतीय सरकार नें डॉ खुराना कॉ पद्म भूषण से सम्मानित किया।
8. वर्ष 1971 में पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ नें द्वारा डी॰एस॰सी की उपाधि प्रदान की गयी।

डॉ हरगोविन्द खुराना द्वारा कृत्रिम जीन्स अनुसंधान
किसी भी व्यक्ति के जिन की संरचना से ही यह निश्चित होता है कि उसका रंग रूप, कद काठी, स्वभाव और उसके गुण कैसे होंगे, यह बात डॉ खुराना के कृत्रिम genes अधय्यन से सिद्ध हुई थी। अगर कोई दंपत्ति खुद में उपस्थित दुर्गुण अपने संतान में नहीं चाहते हैं तो, वर्तमान युग में आधुनिक विज्ञान पद्धति द्वारा यह कार्य भी संभव हुआ है। कृत्रिम जीन्स विज्ञान उन्नति की नीव डॉ खुराना ने ही डाली थी, और उन्ही के रीसर्च वर्क के कारण ही आज लाखों निःसंतान दंपत्ति माता-पिता बन पा रहे हैं।

डॉ हरगोविन्द खुराना की मृत्यु
विज्ञान क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान देने वाले महान वैज्ञानिक डॉ हरगोविन्द खुराना 09 नवंबर, 2011 के दिन दुनिया को अलविदा कह गए। उनकी मृत्यु अमेरिका देश के मैसाचूसिट्स में हुई थी। डॉ खुराना का जीवनकाल 89 वर्ष का रहा। हम इस महान वैज्ञानिक को नमन करते हैं और उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।


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