Thursday, November 3, 2022

Bhaagavat Geeta Pratham Part 2

#BhagwatGeeta                             #BhagwatGeeta                                   #BhagwatGeeta



इसके पहले पोस्ट मे आपको थोरा ही बताया गया था कुछ जायदा  ओर पर्थम   अध्याय का फूल शलोक भागवत गीता का पोस्ट हे  सो आप जरूर पढ़ेंगे ....



हैलो भाई लोग ,

केसे है  आप लोग , आशा ओर  दुवा  करता हु  की  आप सब  ठीक होंगे .........!

आपको  पोस्ट  के कुछ रहस्य बात बताना  चाहते हे की  जब  अर्जुन ने अपने धर्म को भूलने लगे ओर मोह माया के चक्कर मे अपना धर्म को पालन करना भूल गए ओर अपना धनुष ओर बान  नीचे रख दिए  

तब श्री कृष्ण ने   ये महत्वपूर्ण ग्रंथ श्रीमर्द भागवत गीता कही  थी   जो सबसे पहले सूर्य देवता को ये ज्ञान दिए थे ओर सूर्य देवता ने अपने पुत्र को दिए ओर सूर्य देव का पुत्र ने अपने पुत्र को ऐसे करके साधु ओर संत को ये ज्ञान प्राप्त हुआ जो हर मनुष्य ओर हर प्राणी को ये ज्ञान जरूरी हे  !

आज जो  हम पोस्ट करने वाले है  वो बहुत इम्पॉर्टन्ट हे ओर बहुत महत्वपूर्ण हे जो आपके जीवन के कोई भी समस्या  हो  या कोई भी परेसानी हो वो सब का हाल  भागवत गीता  मे हे जो स्टेप   बी स्टेप  आपको पोस्ट करता रहूँगा जो आपको जीवन मे  हर समस्या  का हल मिल सके  ओर कोई एसा  समस्या  नहीं हे जिसका हल भागवत गीत मे न हो  !    अगर आपको पोस्ट पसंद  आई तो पोस्ट को शेयर करे ओर न्यू पोस्ट के लिए फॉलो करे ,तो चलिए आज भागवत गीता के फर्स्ट चैप्टर यानि पहला अध्याय का पहला सलोक बताते  हुए  JayShreeKrishna
 

 #JayShreeKrishna🙏 #BhagawatGeeta 


 संजय उवाच :

                                दृष्टवा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा ।

                                आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत्‌ ॥1-2।।



भावार्थ :      संजय बोले- उस समय राजा दुर्योधन ने व्यूहरचनायुक्त पाण्डवों




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                                    पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्‌ ।

                                     व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ॥ 3


भावार्थ :                          

                        हे आचार्य! आपके बुद्धिमान्‌ शिष्य द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न द्वारा 

                        व्यूहाकार खड़ी की हुई पाण्डुपुत्रों की इस बड़ी भारी सेना को देखिए॥3॥


    

अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि ।

युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः ॥ 4


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धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्‌ ।

पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङवः ॥ 5

युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्‌ ।

सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः ॥ 6


भावार्थ : 

                            इस सेना में बड़े-बड़े धनुषों वाले तथा युद्ध में भीम और अर्जुन के समान शूरवीर सात्यकि और                              विराट तथा महारथी राजा द्रुपद, धृष्टकेतु और चेकितान तथा बलवान काशिराज, पुरुजित,                                       कुन्तिभोज और मनुष्यों में श्रेष्ठ शैब्य, पराक्रमी युधामन्यु तथा बलवान उत्तमौजा, सुभद्रापुत्र                                     अभिमन्यु एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र- ये सभी महारथी हैं॥4-6॥





अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम ।

नायका मम सैन्यस्य सञ्ज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते ॥ 7


भावार्थ : 

                हे ब्राह्मणश्रेष्ठ! अपने पक्ष में भी जो प्रधान हैं, उनको आप समझ लीजिए।

             आपकी जानकारी के लिए मेरी सेना के जो-जो सेनापति हैं, उनको बतलाता हूँ॥7॥




भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः ।

अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च ॥ 8


भावार्थ : 

                आप-द्रोणाचार्य और पितामह भीष्म तथा कर्ण और संग्रामविजयी कृपाचार्य तथा वैसे ही अश्वत्थामा, विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा॥8॥




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अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः ।

नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः ॥ 9


भावार्थ : 

                    और भी मेरे लिए जीवन की आशा त्याग देने वाले बहुत-से शूरवीर अनेक प्रकार के शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित और सब-के-सब युद्ध में चतुर हैं॥9॥





अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम्‌ ।

पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम्‌ ॥ 1.10



भावार्थ : 

                        भीष्म पितामह द्वारा रक्षित हमारी वह सेना सब प्रकार से अजेय है और भीम द्वारा रक्षित इन लोगों की यह सेना जीतने में सुगम है॥10॥





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अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः ।

भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि ॥ 1.11


भावार्थ :

            इसलिए सब मोर्चों पर अपनी-अपनी जगह स्थित रहते हुए आप लोग सभी निःसंदेह भीष्म पितामह की ही सब ओर से रक्षा करें॥11॥




दोनों सेनाओं की शंख-ध्वनि का वर्णन 

तस्य सञ्जनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः ।

सिंहनादं विनद्योच्चैः शंख दध्मो प्रतापवान्‌ ॥1.12৷৷


भावार्थ :  

                    कौरवों में वृद्ध बड़े प्रतापी पितामह भीष्म ने उस दुर्योधन के हृदय में हर्ष उत्पन्न करते हुए उच्च स्वर से सिंह की दहाड़ के समान गरजकर शंख बजाया॥12॥





ततः शंखाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः ।

सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत्‌ ॥1.13৷৷


भावार्थ : 

                इसके पश्चात शंख और नगाड़े तथा ढोल, मृदंग और नरसिंघे आदि बाजे एक साथ ही बज उठे। उनका वह शब्द बड़ा भयंकर हुआ॥13॥




ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ ।

माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शंखौ प्रदध्मतुः ॥1.14৷৷


भावार्थ :

            इसके अनन्तर सफेद घोड़ों से युक्त उत्तम रथ में बैठे हुए श्रीकृष्ण महाराज और अर्जुन ने भी अलौकिक शंख बजाए॥14॥



पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः ।

पौण्ड्रं दध्मौ महाशंख भीमकर्मा वृकोदरः ॥1.15৷৷

भावार्थ :  

                श्रीकृष्ण महाराज ने पाञ्चजन्य नामक, अर्जुन ने देवदत्त नामक और भयानक कर्मवाले भीमसेन ने पौण्ड्र नामक महाशंख बजाया॥15॥

अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः ।

नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ॥ 1.16৷৷

भावार्थ : 

        कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय नामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाए॥16॥

काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः ।

धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः ॥1.17

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द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते ।

सौभद्रश्च महाबाहुः शंखान्दध्मुः पृथक्पृथक्‌ ॥ 1.18



भावार्थ : 

                        श्रेष्ठ धनुष वाले काशिराज और महारथी शिखण्डी एवं धृष्टद्युम्न तथा राजा विराट और अजेय सात्यकि, राजा द्रुपद एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र और बड़ी भुजावाले सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु- इन सभी ने, हे राजन्‌! सब ओर से अलग-अलग शंख बजाए॥17-18॥


 स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्‌ ।

नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन्‌ ॥ 1.19


भावार्थ : 

                    और उस भयानक शब्द ने आकाश और पृथ्वी को भी गुंजाते हुए धार्तराष्ट्रों के अर्थात आपके पक्षवालों के हृदय विदीर्ण कर दिए॥19॥


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